जिस तरह से एक कामयाब कॅरियर की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, उसी तरह से स्टूडेंट्स को हायर एजुकेशन की भी जरूरत है। खासकर एमबीबीएस के क्षेत्र में बहुत से ऐसे भारतीय स्टूडेंट्स हैं, जो बेहतर कॅरियर के लिए और अच्छे रोजगार के अवसरों के लिए विदेश जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहते हैं। वहीं, दूसरी ओर ऐसे भी स्टूडेंट्स हैं, जो अपने ही देश में मेडिकल के लिए होने वाली परीक्षा को अच्छे स्कोर के साथ क्वालीफाई नहीं कर पाते हैं और टूटी हुई उम्मीदों के साथ उन्हें अपनी जिंदगी जीनी पड़ती है। वे अपने लक्ष्य से दूर हो जाते हैं और इस कन्फ्यूजन में रहते हैं कि उन्हें अपनी जिंदगी में क्या करना चाहिए। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए बार-बार अपने देश में एमबीबीएस के लिए अच्छे अंकों के साथ क्वालीफाई करने की कोशिशों की बजाय विदेश जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई का विकल्प चुनना बेहतर साबित हो सकता है। साथ ही एक साल ड्रॉप कर देना बिल्कुल भी बुद्धिमानी से भरा निर्णय नहीं होगा। यह पूरी तरीके से समय की बर्बादी है और इसकी वजह से स्टूडेंट्स फ्रस्ट्रेशन की स्थिति में भी पहुंच सकते हैं।
इसलिए यदि आप उन स्टूडेंट्स में से एक हैं, तो एक साल बर्बाद करने की बजाय विदेश जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करना कैसा रहेगा?
ये हैं वे वजहें, जिनकी वजह से आपको ऐसा करना चाहिए-
कोई डोनेशन फीस नहीं
यदि आप चीन से एमबीबीएस की पढ़ाई करने जा रहे हैं, तो आप यह जानकर सरप्राइज रह जाएंगे कि वहां कोई भी अतिरिक्त राशि नहीं ली जाती है। चीन में केवल एमबीबीएस की एडमिशन फीस ली जाती है। वहीं भारत में ज्यादातर प्राइवेट मेडिकल इंस्टीट्यूट्स एडमिशन फीस के साथ डोनेशन की भी डिमांड करते हैं। साथ ही अधिकतर मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए यहां मेडिकल की पढ़ाई करना बहुत ही महंगा सौदा होता है।
कोई एडमिशन टेस्ट नहीं
चीन के जिन इंस्टीट्यूट्स की डिग्री को भारत सहित दुनिया भर में मान्यता मिली हुई है, वहां पढ़ाई करने के लिए किसी भी तरह की प्रवेश परीक्षा नहीं देनी होती है। उदाहरण के लिए यदि आप चीन में एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको किसी भी प्रवेश परीक्षा में शामिल नहीं होना पड़ेगा। यहां पर आपको एडमिशन पूरी तरीके से अंतिम परीक्षा में आपके परफॉर्मेंस के आधार पर मिलता है, जो कि 12वीं में 50% अंक होता है और साथ में नीट क्वालीफाई करना जरूरी होता है।
रहने का खर्च है सस्ता
यदि आप भारत के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करना चाह रहे हैं, तो आपको एक ऐसी जगह ढूंढने की जरूरत होती है, जहां पर कि रहने-खाने का खर्च ज्यादा न आए और ऐसी जगह को चुनना बहुत ही कठिन हो जाता है। वहीं, विदेश में एमबीबीएस करने के दौरान अधिकतर जगहों पर भारतीय स्टूडेंट्स के पॉकेट पर ज्यादा भार नहीं आता है। इसलिए भारतीय स्टूडेंट्स बिना रहने के खर्च के बारे में चिंता किए चीन और रुस जैसे देशों में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए आवेदन कर सकते हैं।
वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर
विदेशों के मेडिकल यूनिवर्सिटीज में इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटीज को लेकर किसी तरह का कोई शक आपके दिमाग में हो ही नहीं सकता। रुस या चीन जैसे देशों में मौजूद मेडिकल विश्वविद्यालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर भारत में स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटीज की तुलना में काफी बेहतर होते हैं। वहां की यूनिवर्सिटीज में आधुनिक उपकरण, लैबोरेट्रीज, अच्छी तरह से विकसित अस्पताल, लैपटॉप, स्मार्ट क्लासरूम और बाकी कई तरह की भी सुविधाएं मौजूद होती हैं। इनके कैंपस का इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत ही आधुनिक होता है। यहां तक कि कजाकिस्तान में भी जो मेडिकल इंस्टिट्यूट से एमबीबीएस की पढ़ाई करवाते हैं, वहां का इंफ्रास्ट्रक्चर भी स्टूडेंट्स की जरूरतों को अच्छी तरह से पूरा करने के हिसाब से विकसित है।
अंतर्राष्ट्रीय पहचान
विदेशों में स्थित मेडिकल विश्वविद्यालय स्टूडेंट्स को ज्यादा अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर देते हैं। दुनिया के अलग-अलग देशों से नाता रखने वाले और अलग-अलग कम्युनिटीज के मरीजों के साथ स्टूडेंट्स बातचीत करते हैं। वे उनकी समस्याओं के बारे में चर्चा करते हैं। साथ ही वे उनकी जरूरतों को भी समझ पाते हैं। इसके अलावा दूसरे देशों के लोगों के साथ कम्युनिकेट करने से दूसरे देशों में उन्हें बस जाने भी आसानी होती है। इसलिए यदि आप फिलीपींस और यूक्रेन जैसे देशों में एमबीबीएस करने जा रहे हैं, तो एक मेडिकल स्टूडेंट के तौर पर जरूरी अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर आपको अच्छी तरह से मिल पाएगा।
निष्कर्ष
इसलिए एक साल खराब करने से बेहतर यही है कि अवसर का लाभ उठाते हुए जॉर्जिया, कजाकिस्तान, रुषरुस, फिलीपींस, यूक्रेन और चीन जैसे देशों से आप एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर लें और मेडिकल की दुनिया में अपना भविष्य भी सुरक्षित कर लें।