जो स्टूडेंट्स विदेशों में जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं, वे वहां की यूनिवर्सिटीज की रैंकिंग के बारे में गूगल और याहू जैसे अलग-अलग सर्च इंजन में सर्च करते रहते हैं। हालांकि, वे जो नाम और जगह डाल कर यह सर्च करते हैं, उसका रिजल्ट देने वाले स्रोत भरोसा करने लायक नहीं होते हैं। वे ज्यादातर कम विकल्पों वाले कंसल्टेंट्स या एजुकेशन माफियाओं की वेबसाइट पर पहुंच जाते हैं। जबकि सबसे भरोसेमंद जानकारी या तो विकिपीडिया से मिल सकती है या फिर ऐसे संस्थानों से, जिनसे कि विश्वविद्यालयों को मान्यता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए बहुत सी ऐसी वेबसाइट मौजूद हैं, जो मेडिकल यूनिवर्सिटी की रैंकिंग को A+, A, B+, B आदि इस तरह से दिखाते हैं। स्टूडेंट्स, जो विदेशों में पढ़ाई के मामले में नए हैं, वे असमंजस की स्थिति में रहते हैं कि उन्हें कहां जाना चाहिए; उन्हें किनसे संपर्क करना चाहिए और उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प कौन-सा होगा? इन चीजों की वजह से उनका कंफ्यूजन बढ़ता चला जाता है। ग्रुप में और सोशल मीडिया में इस तरह की जानकारी बिना सोचे-समझे शेयर कर देने से यह और फैलता ही चला जाता है।
हायर एजुकेशन संस्थानों की ओर से अलग-अलग मानकों के आधार पर विश्वविद्यालयों की रैंकिंग जारी की जाती है। ज्यादातर मैगजीन, अखबार, वेबसाइट, सरकारी बॉडीज या फिर शैक्षणिक बॉडीज की तरफ से रैंकिंग की जाती है। इन सभी के पास इंस्टीट्यट्स या फिर यूनिवर्सिटीज की रैंकिंग के लिए अलग-अलग पैरामीटर्स मौजूद होते हैं। इनमें से ज्यादातर वार्षिक सर्वे या फिर रिव्यू पर आधारित होते हैं।
जहां कुछ इंस्टीट्यट्स की रैंकिंग उनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की क्वालिटी के आधार पर की जाती है, वहीं कुछ की रैंकिंग उनके बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर होती है। किसी भी इंस्टीट्यट को जज करने के लिए अन्य पैरामीटर्स में उनके पास मौजूद प्रोग्राम्स की संख्या, उन्हें मिलने वाली फंडिंग, उनके यहां रिसर्च की सुविधाएं, उन्हें मिली मान्यताएं, उनके स्पेशलाइजेशन और स्टूडेंट्स की संख्या आदि शामिल हो सकते हैं।
विश्वविद्यालयों की या फिर इंस्टीट्यट्स की रैंकिंग सभी चीजों को लेते हुए या फिर उनके पास मौजूद विभागों के आधार पर की जाती है। कुछ का आकलन देश के अंदर होता है, जबकि कुछ का आकलन दुनियाभर के मुताबिक होता है। ऐसी कई बॉडीज मौजूद हैं, जिन्हें यह काम करने में काफी विशेषज्ञता मिली हुई है। लेकिन पूरी तरीके से प्रमाणिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए लंबे समय तक और लगातार शोध करने की जरूरत होती है। साथ ही परिणाम में बदलाव आने से पहले इसका मूल्यांकन करना भी जरूरी होता है।
ऑनलाइन सर्च करने के दौरान नेशनल मेडिकल कमिशन यानी के NMC या फिर विकिपीडिया जैसी प्रमाणिक वेबसाइट पर तो स्टूडेंट्स नहीं पहुंच पाते हैं, लेकिन बाकी वेबसाइट या कंसल्टेंट्स के पास उन्हें जरूर पहुंचा दिया जाता है, जो इस मौके का लाभ उठाते हैं और स्टूडेंट्स को डायवर्ट कर देते हैं। ऐसे कंसल्टेंट्स के पास ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं होते हैं। जैसे ही ये स्टूडेंट्स उनके पास पहुंचते हैं, वे इनका डाटा निकाल लेते हैं और प्रॉफिट कमाने के लिए वे इनका इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। स्टूडेंट्स को इस बात का एहसास तब होता है, जब वे यूनिवर्सिटी में पहुंचते हैं। तब तक समय खत्म हो चुका होता है। स्टूडेंट्स के पास सिवाय इसके और कोई विकल्प नहीं बचता है कि उन्हें जो मिला है, उसी के साथ वे आगे बढ़ें।
चीन में मेडिकल यूनिवर्सिटी से जुड़ी किसी भी तरह की सलाह के लिए या फिर विदेशों में मौजूद यूनिवर्सिटीज और उनके पाठ्यक्रम को लेकर किसी भी तरह की जानकारी के लिए स्टूडेंट्स को सिर्फ एनएमसी की वेबसाइट (nmc.org.in) पर मौजूद रिकॉर्ड या फिर विकीपीडिया पर ही भरोसा करना चाहिए। एनएमसी के मुताबिक या फिर विकीपीडिया या चीन के शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक वहां यूनिवर्सिटी की रैंकिंग, ग्रेडिंग या रेटिंग नहीं होती है। एनएमसी की वेबसाइट पर जो भी विश्वविद्यालयों की लिस्ट मौजूद है, वे सभी सरकारी यूनिवर्सिटीज हैं और वे क्लिनिकल मेडिसिन या एमबीबीएस की पढ़ाई करवाती हैं। यहां पढ़ाई का माध्यम इंग्लिश है। स्टूडेंट्स दिल्ली में स्थित एनएमसी के दफ्तर जाकर भी या फिर एनएमसी के हेल्पलाइन नंबर पर फोन करके भी जानकारी को वेरीफाई कर सकते हैं।